लाओत्से कहता है, शब्द-बाहुल्य बुद्धि को क्षीण करता है। जितने शब्द भीतर बढ़ जाते हैं, उतनी ज्यादा बुद्धि कमजोर हो
जाती है।
उलटी बात कहता है। हमारी सारी चेष्टा यही होती है कि शब्द कैसे बढ़ जाएं। एक भाषा आदमी जानता हो, तो दूसरी सीखता है,
तीसरी सीखता है, चौथी सीखता है। हम बड़ी प्रशंसा में कहते हैं कि फलां आदमी दस भाषाएं जानता है। एक आदमी पंडित है, हम
कहते हैं, उसे वेद कंठस्थ है ,उपनिषद मुखाग्र है, गीता पूरी दोहरा सकता है। क्यों ? शब्द की संपत्ति है उसके पास।
शब्द सहारे देते हैं। धोखा भी देते हैं।
श्रद्धा इतनी आसान चीज नहीं है, नमस्कारों से मिल जाए। अक्सर तो यह होता है कि श्रद्धा को छिपाने का ढंग है नमस्कार। कहीं
चेहरे का असली भाव पता न चल जाए , आदमी हाथ जोड़ कर नमस्कार कर लेता है। या हाथ जोड़ने में वह दूसरा आदमी चूक जाता है असली आदमी को देखने से कि असली आदमी क्या सोेच रहा था। मन में सोेच रहा था, इस दुष्ट की शक्ल सुबह-सुबह कहां दिखाई पड़ गई! नमस्कार करने में उस आदमी को धोखा हो जाता है, नमस्कार देख कर अपने रास्ते पर चला जाता है।
हम शब्द से ही जीते हैं, शब्द ही खाते हैं, शब्द में ही सोते हैं। इसको पश्चिम में लोग समझ गए हैं। तो वे कहते हैं कि चाहे उचित हो
या न उचित हो, आदमी कुछ करे या न करे, तुम थैंक यू तो उसे कह ही देना। यह कोई सवाल नहीं है। हम अपने मुल्क में अभी
शब्द के बावत इतने समझदार नहीं हैं।
शब्द हमारा जीवन बन गया है। वही कोई कह देता है, बहुत प्रेम करता हूं आपको। सब कुछ बदल जाता है भीतर ! अंधेरी रात एकदम
पूर्णमासी हो जाती है। किसी ने कह दिया , बहुत प्रेम करता हूं आपको! और हो सकता है, वे किसी फिल्म का डायलाग ही दोहराते हों!
क्या, शब्द के साथ हमारा इतना अंतरसंबंध क्यों है? हमारा अंतरसबंध इसी लिए है कि हमारे पास शब्द के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है। हमारे पास सत्व जैसा कुछ भी नहीं है। हम बिलकुल खाली हैं। खाली लाओत्से के अर्थों में नहीं, शून्य के अर्थों में नहीं, खाली दरिद्र और दीन के अर्थों में। खाली उस अखंड शक्ति के अर्थों में नहीं, खाली उस अर्थों में,जिनके हाथ में कुछ भी नहीं है, शून्य भी जिनके हाथ में नहीं है। इस तरह हम खाली हैं, शब्द से ही जीते हैं।
शब्द से हम जी रहे हैं। इन शब्दों को कहता है लाओत्से कि केवल हमारी बुद्धि क्षीण होती है। यद्यपि लाओत्से को भी कहना पड़ता
है, तो शब्दों से ही कहना पड़ता है। लाओत्से भी बोलता है, तो शब्द से ही बोलता है। इससे एक बड़ी भ्रांति होती है। वह भ्रांति यह
होती है कि लाओत्से भी तो शब्द से ही बोलता है और शब्द के खिलाफ बोलता है।
लाओत्से कहता है, ―शब्द-बाहुल्य से बुद्धि निःशेष होती है। इसलिए अपने केंद्र में स्थापित होना ही श्रेयस्कर है।’
अपने केंद्र में ! क्योंकि केंद्र शून्य है। शब्द केवल परिधि है। जैसे नदी की ऊपर सतह पर पत्ते छा गए हों और नदी ढंक गई हो, काई
छा गई हो और नदी का पानी दिखाई न पड़ता हो, ऐसे ही हमारे ऊपर शब्दों का बाहुल्य है। भीतर शून्य छिप गया है। उस शून्य को लाओत्से केंद्र कहता है। वह कहता है, वही है हमारे प्राण का केंद्र। लेकिन हम परिधि पर भटकते रहते हैं। और परिधि हमें इतने जोर से पकड़ लेती है कि हम कभी भीतर पहुंच नहीं पाते। परिधि– एक शब्द दूसरे शब्द को पकड़ा देता है, दूसरा तीसरे को पकड़ा देता है।
"ओशो ताओ उपनिषद"
Laotse says, word-multiplicity weakens intelligence. The more words that grow inside, the weaker the intellect
She goes.
He says the opposite. All our efforts are how to make words grow. If one person knows the language, the other learns,
The third learns, the fourth learns. We say in great appreciation that such and such man knows ten languages. A man is a priest, we
It is said that the Vedas are memorized, the Upanishads are the main scripture, the Gita can be completely repeated. Why? He has the property of the word.
Words help. They also cheat.
Shraddha is not such an easy thing, meet with greetings. It is often said that salutation is the way to hide reverence. somewhere If the real facial expressions are not known, the man greets with folded hands. Or that other man misses in joining hands to see the real man what the real man was thinking. Was thinking in my mind, where did the appearance of this wicked appear in the morning! The man gets tricked into doing the salutation, seeing the salutation and goes on his way.
We live by the word, eat the word, sleep in the word. People in the West have understood this. So they say that even if it is appropriate Whether it is right or not, if the man does anything or not, you should just tell him. This is not a question. We are in our country right now Not so smart about the word.
The word has become our life. Someone says the same, I love you very much. Everything changes within! Dark night immediately It becomes full moon. Someone said, I love you very much! And maybe they repeat the dialogue of a film!
What, why do we have such a correlation with the word? Our interrelation is that we have nothing more than words. We have nothing like sattva. We are completely empty. Not in the sense of empty Laotse, not in the sense of zero, in the sense of empty poor and poor. Empty is not in the sense of that unbroken power, empty in the sense that there is nothing in their hands, zero also in those who do not have it. In this way we are empty, we live by the word.
We are living with the word. These words say that only our intelligence is impaired. Even though laotse had to say
If you have to say it with words only. Lao Tzu also speaks, he speaks with the word. This leads to a big fallacy. That fallacy
It is said that Lao Tzu also speaks with the word and speaks against the word.
Lao Tzu says, "Word-multiplicity leads to wisdom." Therefore, it is best to establish at your center.
At your center! Because the center is zero. The word is only circumference. As the leaves are covered on the top surface of the river and the river is covered, the moss The water of the river is covered and it is not visible, such is the abundance of words on us. The void within is hidden. That void is called Laotsay Center. He says, he is the center of our soul. But we keep wandering on the periphery. And the perimeter holds us so strongly that we never reach inside. Perimeter - One word catches the other word, the other catches the third.
"Osho Tao Upanishad"
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