*मेरी दृष्टि में जीवन पूरा उत्सव होना चाहिए। तो फिर होली इत्यादि की जरूरत न रहेगी।* *दीवाली एक दिन क्या?- *साल भर दिवाला, एक दिन दिवाली, यह कोई ढंग है जीने का? साल भर अंधेरा, एकाध दिन जला लिए दिये! साल भर मुहर्रम, एकाध दिन मना लिया जश्न; पहन लिये नये कपड़े चले मस्जिद की तरफ! मगर तुम्हारी शकल मुहर्रम हो गयी है।* *तुम लाख उपाय करो, तुम्हारी शकल पर मुहर्रम छा गया है। तुम्हारे सब उत्सव इत्यादि थोथे मालूम पड़ते हैं, उपर से मालूम पड़ते हैं। उत्सव का आधार नहीं है, बुनियाद नहीं है। उत्सवपूर्ण जीवन होना चाहिए।* *इसलिए मेरे इस आश्रम में न तो कभी दिवाली है, न कभी होली है। यहां सदा होली है, सदा दीवाली है।* *यहां चल ही रहा है, यहां नृत्य शाश्वत है। यहां जो भी नाचना चाहे उसे निमंत्रण है। और ख्याल रखना,* *एकाध दिन कोई नाच ही नहीं सकता। नाचता ही रहे, नाचता ही रहे, तो उसे नाचने का प्रसाद होता है, उसके नाचने में गुणवत्ता होती है, उसके नाचने में अपूर्व भाव होता है।* *और उसके नाचने में कोमलता, सरलता। उसके नाच में हिंसा नहीं होती। नहीं तो तांड़व नृत्य बन जाता है जल्दी ही नाच। तुम्हारे सब उत्सव तांड़व नृत्य हो जाते हैं। जल्दी ही गाली—गलौज पर नौबत उतर आती है। तुम्हारे सब उत्सवों में हिंदू—मुस्लिम दंगे हो जाते हैं।*
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*यह बड़ा आश्चर्य की बात है!*
*उत्सव के दिन दंगा क्यों? मारपीट क्यों?*
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*एक—दूसरे को सताने की इच्छा क्यों? गाली— गलौज क्यों? गंदे— अश्लील नाच क्यों?* *'कबीर' के नाम से गालिया दी जा रही हैं—हद्द हो गयी! गालिया बकते हो, उसको कहते हो— 'कबीर'! कबीर को तो बख्शो !*
*पीछे कारण है।*
*तुम्हारा जीवन दमित जीवन है। एकाध दिन के लिए तुम्हें छुट्टी मिलती है, जैसे साल भर को कारागृह में बंद रहते हो, एकाध दिन के लिए छुट्टी मिलती है, सड्कों पर आकर शोरगुल मचा कर फिर अपने कारागृहों में वापिस लौट जाते हो। अब जो आदमी कभी—कभी सड़क पर आता है साल में एकाध बार, अपने काल—कोठरी से छुटता है, वह उपद्रव तो करेगा ही! उसके लिए स्वतंत्रता उच्छृंखलता बन जाएगी। लेकिन जो आदमी सदा ही रास्तों पर है, खुले आकाश के नीचे वह उपद्रव नहीं करेगा।*
*मैं चाहता हूं, तुम्हारा पूरा जीवन उत्सव की गंध से भरे, तुम्हारे पूरे जीवन पर उत्सव का रंग हो, इसलिए तुम्हें रंग रहा हूं। यह मेरा गैरिक रंग तुम्हारे जीवन को उत्सव में रंगने के लिए प्रयास है। यह गैरिक रंग सुबह ऊगते सूरज का रंग है। यह गैरिक रंग खिले हुए फूलों का रंग है। यह गैरिक रंग अग्नि का रंग है। जिससे गुजर कर कचरा जल जाता है और सोना कुंदन बनता है।* *यह गैरिक रंग रक्त का रंग है—जीवन का, उल्लास का; नृत्य का, नाच का। इस रंग में बड़ी कहानी है। इस रंग के बड़े अर्थ है। तो राधा! जिस रंग में मैं तुम्हें रंग रहा हूं उसमें पूरी तरह रंग जाओ। तो होली भी हो गयी, दीवाली भी हो गयी। और यही पृथ्वी तुम्हारे लिए स्वर्ग बन जाएगी*
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