Snehdeep Osho Vision

 दो तरह के व्यक्तित्व होते है। जो लोग अंतर्मुखी है उनके लिए उनके भीतर ही सब रंग- के मिलने की धारण आसान है। लेकिन जो बहिर्मुखी लोग है वे भीतर की धारणा नहीं बना सकते। वे बाहर की ही कल्पना कर सकते है। उनका चित्त बाहर ही यात्रा करता है। वे भीतर नहीं गति कर सकते उनके भीतर कोई आंतरिकता नहीं है।

अंग्रेज दार्शनिक डेविड ह्यूम ने कहा है, जब भी मैं भीतर जाता हूं वहां मुझे कोई आत्मा नहीं मिलती। जो भी मिलता है वह

बाहर के प्रतिबिम्ब है—कोई विचार, कोई भाव। कभी किसी आंतरिकता का दर्शन नहीं होता। सदा बाहरी जगत ही वहां प्रतिबिम्ब मिलता है। यह श्रेष्ठतम बहिर्मुखी चित्त है। और डेविड ह्यूम सर्वाधिक क बहिर्मुखी चित्त वालों में से एक है।

इसलिए अगर तुम्हें भीतर कुछ धारणा के लिए न मिले और तुम्हारा मन पूछे कि यह आंतरिकता क्या है। तो अच्छा है कि

दिवार पर किसी बिंदु का प्रयोग करो।

दिवार पर बिंदु बनाओ और उस पर एकाग्र होओ। असली बात एकाग्रता के कारण घटती है। बिंदु के कारण नहीं । बाहर है या भीतर यह प्रासंगिक नहीं है। यह तुम पर निर्भर है। अगर दीवार पर देख रहे हो, एकाग्र हो रहे हो, तो तब तक एकाग्रता साधो जब तक वह बिंदु विलीन न हो जाए।

इस बात को ख्याल में रख लो: जब तक बिंदु विलीन न हो जाए।‘’

पलक को बंद मत करो। क्योंकि उससे मन को फिर गति करने के लिए जगह मिल जाती है। इसलिए अपलक देखते रहो।

क्योंकि पलक के गिरने से मन विचार में संलगन हो जाता है। पलक के गिराने से अंतराल पैदा होता है। और एकाग्रता नष्ट

हो जाती है। इसलिए पलक झपकना नहीं है।


"ओशो विज्ञान भैरव तंत्र"



There are two types of personality.  For those who are introverted, it is easy to wear all the colors within them.  But those who are extroverted cannot create inner perception.  They can only imagine outside.  His mind travels outside.  They cannot move in. There is no internality within them.

 The English philosopher David Hume has said, "Whenever I go inside I do not find any soul."  Whoever gets

 The outside is reflective - an idea, an emotion.  There is never a vision of internalism.  The image is always found in the outer world.  This is the best extroverted mind.  And David Hume is one of the most extroverted minds.

 So if you do not get some perception inside and ask your mind what is this innerness.  So good that

 Use a point on the wall.

 Make a point on the wall and concentrate on it.  The real thing decreases due to concentration.  Not because of the point.  Outside or within it is not relevant.  It's up to you  If you are looking at the wall, converging, then concentrate concentration until that point disappears.

 Keep this in mind: until the point dissolves. "

 Do not close the eyelid.  Because it gives the mind space to move again.  So keep watching Apalak.

 Because the fall of the eyelid engages the mind.  Falling of the eyelid creates a gap.  And destroy concentration

 It happens.  Therefore do not blink an eyelid.

 

"Osho Vigyan Bhairava Tantra"


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